बसन्त


कल बसन्त पंचमी है

और आज फिर

मेरी स्मृतियों में जीवित,

 हो उठा जलालपुर.....,

मेरा छोटा सा गाँव......

जहाँ आबादी कम,

खेत-खलिहान ज्यादा थे..,

उस गाँव के एक बहुत बड़े भाग में,

बाँसों का झुरमुट था....

जिसमे रहते थे,

भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र....

हमें डराने का सारा,

प्रबंधन था वहाँ....

और एक थे बरहम बाबा,

जो पीपल व बरगद के,

नीचे रहते.....

आज भी मेरी मन्नतों में,

वो शामिल रहते...

बसन्त का मौसम जब-जब आता,

मेरी स्मृतियों का गाँव जीवित होता,

पीले सरसों की छटा से,

पूरा गाँव महकने लगता...

कोयके गाने लगती...

किसानों के चेहरे चमक उठते...

आज मैं कह सकती हूँ,

बसन्त को मैंने महसूस किया है,

अच्छा ही था कि तब,

हमारे पास स्मार्टफोन नही था,

वर्ना हम भी फोन पर ही,

बसन्त उत्सव मनाते....

कल फिर बसन्त पंचमी है,

और मैं खोने लगी,

अपने सपनों के गाँव

जलालपुर में...

जहाँ बसन्त घोलता था,

जीवन मे मिश्री....

 

प्रतिभा श्रीवास्तव अंश


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