द इंक बैंड की प्रस्तुति ने श्रोताओं पर अमिट छाप छोड़ी



भोपाल। टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्व रंग के छठे दिन शनिवार की शाम में इरशाद कामिल के बैंड द इंक की प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर उनके ज़हन में अपने लफ़्ज़ों की अमित छाप छोड़ी । 21 मार्च विश्व पोयेट्री दिवस के मौके पर इरशाद कामिल ने एक नया प्रयोग किया वो द इंक बैंड नामक एक बैंड लेकर आये थे जहां वह अपनी कविताओं के साथ म्यूजिकल ट्रीटमेंट कर रहे हैं। देश का पहला पोएट्री बैंड द इंक कविताओं के जरिए दिलों की बातें करता है, जिसका मकसद गीतों और कविताओं के साथ संगीत का मिश्रण और उसमें सही तालमेल बैठाकर दर्शकों तक पहुंचाना है।
इरशाद ने 'मिल के भी हम ना मिले, तुमसे ना जाने क्यों, मीलों के हैं फासलें तुमसे ना जाने क्यो' के साथ प्रस्तुति की शुरुआत की। अपनी चर्चित नज़्म- 'मैं उसका हो भी चुका और उसको खबर ही नहीं, इलाही इस खबर से बेखबर करे मुझको, मैंने खोया है खुद को बड़ी मुश्किल से, यहां खुदा कोई मुझे ढूंढ न लाए' के साथ -साथ 'मैं आने आप को रख के ख्याल में उसको, यह भूल जाऊं कभी खुद को रख दिया था कहीं' में संगीत का मिश्रण कर श्रोताओं को खूब लुभाया। कीबोर्ड से अनिकेत, वायलिन से रागिनी शंकर, गिटार से एगनल रोमन और अपनी सुरीली आवाज़ से ऋषिका मुखर्जी ने इरशाद के साथ संगत करते हुए श्रोताओं को सम्मोहित कर दिया।
मैं हल्के में बात करता हूं
मगर हल्की बातें नहीं करता- इरशाद कामिल


टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग के साहित्य उत्सव में अपने बैंड 'द इंक' के साथ शिरकत कर रहे हैं। इरशाद कामिल ने विशेष बातचीत में बताया कि मेरा मकसद युवाओं के दिल की बात को कहना है। मैं उनके विचारों को अपने शब्द देता हूं, युवा मुझसे और मैं उनसे मोहब्बत करता हूं। क्योंकि मेरा मानना है कि अगर आप दिल से कहोगे तभी बातें दिल तक पहुंचेंगी। मैं किसी भाषा में नहीं लिखना चाहता। मैं एहसासों को लिखता हूं। जो क्लास और मास दोनों वर्गों के समझ में आता है।


विश्व रंग की भव्यता का उल्लेख करते हुए इरशाद कहते हैं कि विश्व रंग युवाओं को साहित्य एवं कला के चेहरों को दिखाने की कोशिश कर रहा है। यह कलाओं के रंगों का इंद्रधनुष है, और यह उत्सव सभी भारतीय भाषाओं को एक मंच पर समावेशित करने की कोशिश कर रहा है।


तुम साथ हो, जग घूमेया और कुन फाया कुन जैसे बहुचर्चित गानों के बोल लिखने वाले इरशाद अपने बैंड 'द इंक' के बारे में बताते हुए कहते हैं यह पहला पोएट्री बैंड है, जिसमें शब्द ड्राइविंग सीट पर होते हैं और आवश्यकतानुसार संगीत को मोड़ते रहते हैं। हमारा उद्देश्य दर्शकों में असल आनंद से जोड़ने से हैं।


बदहवासी और बेचैनियों ने बचपन छीन लिया - विनय उपाध्याय


बाल साहित्य : सरोकार और चुनौतियाँ पर हुआ व्याख्यान


भोपाल. टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्व रंग के छठे दिन मिंटो हॉल में बाल साहित्य : सरोकार और चुनौतियाँ पर व्याख्यान हुआ। सत्र में कई वक्ताओं ने इस संवेदनशील और महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार साझा किए। सत्र के अध्यक्ष दिव्य रमेश थे, जबकि बलराम गुमास्ता समन्वयक थे। विनय उपाध्याय, त्रिपुरारी शर्मा, हेमंत देवलकर और प्रीति खरे प्रमुख वक्ता थे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने कहा कि आज के नौनिहाल पीढ़ी दुर्भाग्य से ऐसे समय से गुजर रही है जब उसके चारों ओर बदहवासी और बेचैनियों का मंजर है। प्रकृति से उसका फासला है इसलिए संस्कृति भी और उसके नैतिक मूल्य भी उसकी शख्सियत औऱ अनुभव का हिस्सा नहीं बन रहे हैं। दोष बच्चों का नहीं है, हमारे दुराग्रहों ने उन्हें उनके नैसर्गिक अधिकारों से दूर कर दिया है। इस रोचक सत्र में हेमंत देवलकर, बलराम गुमास्ता और विनय उपाध्याय ने बच्चों की कविताओं का पाठ भी किया। इस दौरान दिव्य रमेश ने कहा बाल मस्तिष्क पर तकनीकी ने कब्जा कर लिया है, इससे उनकी मासूमियत खतरे में पड़ गई है। उन्हें साहित्य की तरफ मोड़कर उनकी बाल सुलभ सहजता वापस पाई जा सकती है। उन्होंने कहा हमें किसी भी तरह की लत में नहीं पड़ना चाहिए। बच्चे वही सीखते हैं जो हम करते हैं। इस दौरान बलराम गुमास्ता ने कहा कई दुर्भाग्यपूर्ण चीजें हमारे आस-पास चल रही हैं जो बच्चों के पक्ष में नहीं हैं। बरसों पहले, बच्चे दादी-नानी से कहानियाँ सुनते थे लेकिन अब इस चीज़ को बदल दिया गया है इसलिए अच्छे बाल साहित्य की ज़रूरत बढ़ गई है। इससे पहले बाल थिएटर के लिए काम कर रहीं शोभा चटर्जी ने अतिथियों का स्वागत किया।


आज सब ने अपने हाशिये बना रखे हैं : महेश दर्पण


निराला सभागार में दोपहर 3:00 बजे 'केंद्रीय परिदृश्य में हाशिये के स्वर' पर व्याख्या हुआ। लक्ष्मण गायकवाड़, जयप्रकाश कर्दम, अजीज हाज़िनी, ए. अरविंदाक्षन आदि वक्ताओं ने संबोधित किया। कार्यक्रम के समन्वयक महेश दर्पण थे तो संचालन डॉ. प्रीति खरे ने किया। इस दौरान जितेंद्र जितांशु की पुस्तक 'गांधी आज भी खरे' का विमोचन भी किया गया। व्याख्यान को संबोधित करते हुए महेश दर्पण ने कहा


आज सब ने अपने हाशिये बना रखे हैं और उसके लिए स्वर निर्धारित कर रहे हैं। आज दलित साहित्य, अल्पसंख्यक साहित्य और नई अस्मिताओं के स्वर हाशिये से निकलकर मुख्यधारा में स्थापित हो चुके हैं। इधर अजीज़ हाज़िनी ने कहा कश्मीर की सुंदरता के अलावा बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जो आज हाशिए पर हैं और उनके स्वर पूरे विश्व को अपनी आवाज से परिचित करा रहे हैं।


इधर प्रेमचंद सभागार में भारतीय भाषाओं में युवा लेखन पर व्याख्यान हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता जानकी प्रसाद शर्मा ने की तो संचालन कुमार अनुपम ने किया। इस दौरान कोंकणी भाषा की साहित्यकार अन्वेषा अरुण सिम्बाल ने कोंकणी भाषा में अपनी रचनाओं का पाठ किया। इसके बाद उन्होंने अपनी कविताओं का हिंदी अनुवाद भी पढ़कर सुनाया। इस श्रृंखला में उन्होंने 'भागदौड़' पढ़ी। 


'मुझे भागदौड़ करते देख कह उठता है मेरा मन


कभी मुझसे भी ऐसे प्रेम किया करो न'। इसके बाद उन्होंने कविता 'चोर कहीं की',पढ़ी।


नदी से सटकर बहता है समय- अमेयकांत


हिंदी भाषा के कवि अमेयकांत ने अपनी बहुचर्चित कविता 'घाट' का पाठ किया।


'नदी से सटकर बहता है समय


जिसमें धीरे धीरे बहते रहते हैं घाट'


इसके बाद बलराम ने 'मैं, तुम और रामप्रसाद' , पहाड़ों का शहर' का पाठ किया। इसके बाद हिंदी कवि रवि करोड़े ने कविता पाठ किया। वहीं पीयूष ठक्कर ने गुजराती में कविताएं पढ़ी। उन्होंने 'होस्टल पोयम्स' सीरीज की कविताओं का काव्य पाठ अपनी मूल भाषा गुजराती में किया। उन्होंने अपनी अनुवादित कविता 'उस रात की बात' का काव्य पाठ भी किया। पीयूष के बाद संस्कृत और फारसी कवि बलराम शुक्ल ने अपनी रचनाएं सुनाईं। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि निरंजन श्रोतिय ने अलग-अलग भाषा के कवियों द्वारा पढ़ी गयी रचनाओं का विश्लेषण किया। वरिष्ठ साहित्यकार जानकी प्रसाद शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि हम उत्तर भारत के रहने वालों को दक्षिण भारतीय लिपि को भी सीखना समझना चाहिए ताकि वहां के लेखकों की रचनाओं का अनुवाद कर सकें।


व्यंग्य आपको ब्रेन के लिए भोजन देते हैंन कि स्टैंडअप


महादेवी सभागार में दोपहर 3:00 बजे व्यंग्य रचना पाठ का आयोजन किया गया। इस सत्र में डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी प्रख्यात व्यंग्यकार,  श्री शांतिलाल जैन (पेशे से बैंकर, ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान), व्यंग्यकार ईश्वर शर्मा, लखनऊ से श्रीमती इंद्रजीत कौर, व्यंग्य यात्रा के संपादक प्रेम उपाध्याय ने व्याख्यान दिया। डीयू में वाणिज्य के प्रोफ़ेसर डीयू आलोक पौराणिक ने समन्वय किया।


विश्व रंग पर आधारित चंदकांत द्वारा संपादित 'अमृत दर्पण' पत्रिका, मप्र के व्यंग्यकारों पर आधारित अश्वनी दुबे द्वारा संपादित, 'अट्टहास' व्यंग्य पत्रिका सहित कुछ पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।


इंद्रजीत कौर द्वारा 'कौवे की सत्यकथा' प्राकृतिक संसाधनों के शोषण पर कटाक्ष है। यह एक अंतर्दृष्टि है प्यासे कौए की कहानी की और यह व्यक्तिगत लाभ के लिए शोषण की वर्तमान दुनिया से संबंधित है। ईश्वर शर्मा की फायर ब्रिगेड रचना समाज में लोगों की प्रवृत्ति के बारे में थी, जहां हर कोई अपने स्वयं के संसाधनों का उपयोग करना चाहता है और अपनी गौरवपूर्ण संपत्ति के प्रदर्शन के लिए एक अवसर की तलाश में है और वे परिस्थितियों को बदतर बनाने से भी नहीं चुकते हैं।


शांतिलाल जैन ने घर में कई पालतू कुत्तों को रखने और उस घर में कुत्तों से डरने वाले व्यक्ति की स्थिति पर कटाक्ष किया। संचालक प्रो आलोक पौराणिक ने आम आदमी की समस्याओं पर अपने काम को व्यक्त किया और बताया कि समाज अपने स्वयं के लाभ के लिए इसका उपयोग कैसे कर रहा है।


जाने-माने व्यंग्यकार प्रेम उपाध्याय ने "चिंकारा को न्याय " नामक एक कहानी के माध्यम से भाषण की स्वतंत्रता और समाज में न्यायिक प्रणाली की स्थिति और चित्रगुप्त की अदालत में अपने काम को साझा किया। इस दौरान डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने 3 छोटी कहानियाँ पढ़ीं और उसी से संबंधित प्रश्न पूछे, जिन्होंने दर्शकों को इस विचार के साथ छोड़ दिया कि दंगे और धार्मिक विवाद समाज को कैसे प्रभावित कर रहे हैं और क्या यह इसके लायक है ?


 


आज मजबूत आदमी का बयान है पत्रकारिता – प्रियदर्शन


इधर महादेवी सभागार में 'मीडिया का समकालीन चरित्र' पर व्याख्यान हुआ। इसके वक्ता प्रकाश दुबे, मधुसूदन आनंद, शाहिद लतीफ, उमेश त्रिवेदी, राजेश बादल ने संबोधित किया। कार्यक्रम का समन्वयन प्रियदर्शन ने किया और संचालन राजेश गाबा ने किया। इस दौरान प्रियदर्शन ने कहा भारत की पत्रकारिता जेलों में पली है। आज के पत्रकारों का वर्ग चरित्र बदल गया है। पत्रकारिता पहले कमजोर आदमी की आवाज़ थी। आज पत्रकारिता मज़बूत आदमी का बयान है।


राजेश बादल ने कहा मीडिया का समकालीन चरित्र एक द्वंद्व से लड़ रहा है कि हम सच बोल नहीं पा रहे और झूठ हमें बोलना नहीं है। बेशक हम बाजार में हैं, कारोबार हमें डील कर रहा है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हमने सब कुछ गिरवी रख दिया है।


शाहिद लतीफ़ का कहना था कि वर्तमान समय में अखबारों का चरित्र टीवी चैनलों के मुकाबले साफ है। वक़्त तेज़ी से अपनी खामियों के साथ बदल रहा है। आज पत्रकारों के दिल में आग ही नहीं है वो उस आग की हरारत नहीं महसूस नहीं कर पा रहे हैं। वहीं सोशल मीडिया में फेक न्यूज़ का अम्बार लगा हुआ है।


 


विभिन्न प्रदेशों से आए कवियों ने किया भारतीय भाषाओं में कविता पाठ


रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित साहित्य और कला महोत्सव विश्वरंग के छठे दिन प्रेमचंद्र सभागार में भारतीय भाषाओं का कविता पाठ आयोजित किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता ऐ अरविंदाक्षण और संचालन उतपल बैनर्जी ने किया।


सत्र की शुरुआत बंगला की कवयित्री मंदाक्रांता सेन की कविताओं के हिंदी अनुवाद के पाठन के साथ हुई। इसके बाद उन्होंने अपनी मूल रचनाओं को पढा। इस क्रम में उन्होंने 'युद्ध के बाद की कविता'


'इतनी बार ध्वस्त हो चुकी फिर भी ध्वस्त होने की आदत नहीं पड़ी,


इतनी बार मरती हूं फिर भी मैं मृत्यु पर विश्वास नहीं करती'। इसके बाद उन्होंने कविता 'लज्जा वस्त्र' को श्रोताओं के सामने प्रस्तुत किया। इनके बाद असम से कवयित्री तुलिका चेतिया ने काव्य पाठ किया।  उन्होंने अपनी कविता 'बिना धूप वाला घर' का पाठ किया। जयंत परमार और प्रवासिनी महाकुठ ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।


 


बोलियां हिंदी की रसहीनता को मिटा सकती हैं – संतोष चौबे


वनमाली सभागर में लोक काव्यों का रचना पाठ हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता  डॉ. श्री राम परिहार ने की। समन्वयक अनुराभ सौरभ थे। इस दौरान विश्व रंग के निदेशक संतोष चौबे ने कहा बोलियां हिंदी की रसहीनता को मिटा सकती है। महेश कटारे सुगम, बुंदेली कवि " ऐसे के मुक़द्दर होइये सबरे दूर दरिद्दर हुइए , जित्ते लम्बे पाँव हमाए उत्ते लम्बे चद्दर होइये", " हमने मेहनत मजूरी देखि" जैसी कविताओं से सत्र की शुरुआत की, “उड़ो खेत  को आज ककाजु” आदि .  उनकी पुस्तक " कछु तो गड़बड़ है " सत्र में लॉन्च की गई थी।


वयोवृद्ध बुंदेली कवि बटुक चतुर्वेदी ने मानवता के बारे में एक लोकोक्ति का पाठ करते हुए कहा कि "मानव संचे हिरानी रे"। इसके बाद पद्मश्री बाबूलाल दहिया एक बघेली कवि, जिन्होंने कुछ मुक्तक सुनाए।


श्री सोम ठाकुर, ब्रज भाषा के सबसे पुराने कवियों में से एक; "राधिका प्रेम प्राकासी भाय ... ब्रज मैं जनम ब्रजवासी भये" इस कविता के साथ उन्होंने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अपनी अगली कविताओं में उन्होंने भगवान हनुमान के बारे में अपनी रचनाएँ सुनाईं और फिर श्रोताओं के अनुरोध पर उन्होंने कुछ चौकरिय और उनका हस्ताक्षर गीत "सौ सो नमन करु" गाया।


"सोन चिरैया देस म्हारो निकले गया दिवाला दाजी " -निमाड़ी में कुंवर विजय सिंह ने कुछ गजलें सुनाईं। इनके अलावा, अन्य प्रसिद्ध कवि शैलेन्द्र शुक्ल (अवधी), डॉ. शिव चौरसिया (मालवी), और  सरोज सिंह (भोजपुरी) थे।


जो कुछ नहीं करते वो लेखक बन जाते हैं – गीतांजलिश्री


लेखक से मिलए कार्यक्रम के वक्ता ममता कालिया, गीतांजलिश्री, रेखा कस्तावर थे। इस दौरान मंच संचालन बद्र वास्ती ने किया। कार्यक्रम में गीतांजलि श्री ने कहा जो कुछ नहीं करते, वो लेखक बन जाते हैं क्योंकि उनके मन में हमेशा कुछ न कुछ चलता ही रहता है, कलम आते ही वो शब्द पिरोने लग जात है, वही पिरोये हुए शब्द कुछ समय के बाद लेखक बनकर उभरता है, यही नहीं वो खाली आदमी खाली तो होता है पर वो पढ़ रहा होता है। अगले सत्र में चित्रा मुद्गल, उर्मिला शैलेश और सूर्यबाला ने अपने विचार एवं अनुभव दर्शकों से साझा किए। इस दौरान रेखा सेठी की पुस्तक स्त्री कविता का विमोचन भी हुआ।


विश्वरंग के मंच पर गूंजी युवा कवियों की अभिव्यक्त रचनाएं
टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग के तहत शनिवार को मिंटो हॉल के वनमाली सभागार में युवा कवियों का कविता पाठ हुआ। इस अवसर पर अदनान काफिल दर्वेश, विजया सिंह, पूनम अरोड़ा, रश्मि भारदाज, रंजना मिश्रा, सुजाता सिंह, राकी गर्ग, प्रमोद तिवारी और उपासना झा ने रचनाएं पढ़ी। इस दौरान इस सत्र का  संचालन बसंत त्रिपाठी ने किया। 
सुजाता सिंह - इस दौरान सुजाता सिंह ने मरने से पहले शीर्षक से कविता पढ़ी। जिसमें उन्होंने मृत्यु सैय्या पे पड़े पड़े यूंही कहा अब बहुत सारी स्त्रियों का प्यार ही मुझे बचा सकता है, मैं आखिरी सपना देख रही हूं…, रचना पढ़ी। इसके बाद उन्होंने हर सेकंड शीर्षक से दुनिया की मार से बची हुई नथ इसे नाक में पहनूं, कान में पहनूं, अंगूठी बनाऊं…, रचना को पढ़ा
रॉकी गर्ग ने मां और रिश्ते शीर्षक से कविता सुनाते हुए पढ़ा - मां जिसके पास सोने के लिए बच्चों में लड़ाई होती है, जिसकी आंख में एक आूंस आने पे दुनिया में आग लगाने की चाहत होती है, आज वही मां बन गई हैं बोझ बच्चों पे...। 
रंजना मिश्रा ने - वैसी हुई दुनिया शीर्षक से रचना दुनिया वैसी ही थी जैसी थी, अपने होने और न होने के बीच में काल खंडों के बीच दुनिया अनगिनत थी…को पढ़ा। 
अदनान काफिल दर्वेश ने कविता पाठ शीर्षक से रचना मैं चाहता हूं जब कविता पढ़ूं कि मंच पर बुलाया जाऊं तो अपनी उन कविताओं को सुनाऊं जो बरसों से लिख रहा हूं जो शर्मिंदगी की हद तक अधूरी है…, को सुनाया। 
प्रमोद तिवारी ने दीदी शीर्षक से रचना दीदी मुझसे एक खेल खेलने को कहती, एक-एक कर वह चींटों के पैर तोड़ती जाती, गौर से देखती, उनके घिसट के जाने को, और खुश होती। दीदी मुझसे एक खेल खेलने को कहती…, रचना सुनाई। 
रश्मि भारद्वाज ने शहर में एक उम्र शीर्षक से रचना - एक शहर में मेरी रिहायश को सोलहवां साल लगा है, पर यह उम्र का वह सोलह नहीं, जहां से एक दुनिया बननी शुरू होती है। इस सोलहवें में एक शहर के हिस्से लिखे जा चुके हैं, मेरे जीवन के सबसे सुंदर साल, जिनके बारे में मैं अब तक निश्चित नहीं…, रचना को सुनाया।
बसंत त्रिपाठी ने अक्सर लगता है, मुझे इस बोलती दुनिया में, अपनी अज्ञात उदासियों के साथ, नहीं होना चाहिए था, हर तरफ उम्मीदें हैं, ना उम्मीदी, लोग बहुत विश्वास से अपना पक्ष रखते हैं…, सुनाई। 


विश्वरंग : संस्कृतिक संध्या में लोक कलाकारों ने बांधा समां


भोपाल। विश्व रंग के छठे दिन की सांस्कृतिक संध्या में कई प्रांतों से आए लोक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से विश्वरंग में शामिल होने आए दर्शकों का मन मोह लिया। सांस्कृतिक संध्या में रबींद्रनाथ टैगोर यूनिवर्सिटी के छात्रों ने बरेदी नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी। साथ ही निमाड़ी लोक नृत्य और केरल के लोक नृत्यों की प्रस्तुति भी सांस्कृतिक संध्या में प्रस्तुत की गई। निमाड़ क्षेत्र से आए 22 सदस्ययी कलाकारों ने शानदार नृत्य प्रस्तुत किया जिसे सभी का मन मोह लिया। पारंपरिक वेशभूषा में सजे धजे कलाकारों ने अपनी संस्कृति को विश्व रंग के रंग में रंग दिया। यह देवी आराधना का गायन व नृत्य है। निमाड़ी के माध्यम से हम देवी को पूजते हैं । मुख्यतः देवी आराधना होती है। इस अवसर पर रवीना टैगोर विश्वविद्यालय की विद्यार्थियों ने पाउच माशा की भी प्रस्तुति दी। 


PR Team


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