अयोध्या मामला: क्या पुरातात्विक सर्वेक्षण में राम मंदिर के अवशेष मिले थे?


क्या अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण मंदिरों को तोड़कर हुआ था? क्या इस मस्जिद को मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था? इस मुद्दे को लेकर शुरू से ही बहस रही है. जब भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण यानी 'आर्केयोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया' के तत्कालीन महानिदेशक बीबी लाल ने पहली बार राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया था तब उस टीम में केके मुहम्मद भी शामिल थे. ये बात 1976 और 1977 की है जब मुहम्मद ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से इतिहास में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने के बाद 'स्कूल ऑफ़ आर्केयोलॉजी' में पढ़ना शुरू किया था यानी वे इस सर्वेक्षण में बतौर छात्र शामिल हुए थे.


कुछ सालों बाद केके मुहम्मद ने सबको तब चौंका दिया जब उन्होंने विवादित स्थल पर हुए पुरातात्विक सर्वेक्षण का ख़ुलासा करते हुए कहा था कि 'वहां से प्राचीन मंदिरों' के अवशेष मिले थे. कई जानकारों का कहना है कि यह पक्के तौर पर कहना मुश्किल है कि ये अवशेष हिंदू मंदिर के ही हैं, कुछ पुरातत्वविद यह भी कहते हैं कि वहां जैन या बौद्ध मंदिर होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता. उनसे पहले अपनी रिपोर्ट में बीबी लाल ने भी यही बातें कहीं थीं मगर केके मुहम्मद के बयान ने पूरे विवाद पर एक नया मोड़ ला दिया क्योंकि एक तो वो मुसलमान थे और उस पर उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से इतिहास पढ़ा था. 


 

सत्तर के आख़री दशक में किए गए इस सर्वेक्षण पर केके मुहम्मद आज भी अडिग हैं. उनका कहना है कि पहला सर्वेक्षण सत्तर के दशक में हुआ था लेकिन जो सर्वेक्षण वर्ष 2003 में किया गया उसमें भी तीन मुसलमान शामिल थे जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में काम करते थे. कुछ वर्ष पहले केके मुहम्मद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में निदेशक (उत्तर भारत) के पद से सेवानिवृत हुए हैं. आजकल वो केरल के कोझीकोड में रहते हैं.


बीबीसी से फ़ोन पर बातचीत में केके मुहम्मद कहते हैं कि बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी के पास एक सुनहरा मौक़ा था जब वो इस ज़मीन को हिंदू पक्ष को सौंप देता ताकि वहां मंदिर का निर्माण किया जा सकता था. 


दो-दो बार हुए पुरातात्विक सर्वेक्षणों का विश्लेषण करते हुए केके मुहम्मद कहते हैं कि विवादित स्थल पर जो लंबी दीवार और जो गुंबदनुमा ढांचे मिले हैं वो किसी इस्लामिक निर्माण के नहीं हैं क्योंकि उनमें मूर्तियां हैं जिनका इस्लामिक इबादतगाह में होने का सवाल ही नहीं उठता. 


उन्होंने 'मगर प्रणाली' की मूर्ति का उल्लेख भी किया जिसके अवशेष एएसआई ने विवादित स्थल से अपने सर्वेक्षण के दौरान ढूंढे थे.


इसके अलावा उन्होंने मिटटी की बनी कई मूर्तियों और प्रणालियों का भी उल्लेख किया जिनके अवशेष बरामद हुए थे. कुछ ऐसे शिलालेख भी मिले हैं जो बिलकुल वैसे ही हैं जैसे दिल्ली में क़ुतुब मीनार के पास की मस्जिद में पाए जाते हैं.


ऐसा केके मुहम्मद का दावा है. उनका कहना है कि ये शिलालेख भी 10वीं शताब्दी के हैं.


सर्वेक्षण पर सवाल


मंदिर और मस्जिद के विवाद से सम्बंधित 'एएसआई' के दोनों सर्वेक्षणों पर कई इतिहासकारों ने सवाल भी खड़े किए हैं. उनका आरोप है कि ये सर्वेक्षण दक्षिणपंथी रुझान वाले लोगों ने किए थे.


इसके अलावा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का आरोप था कि पुरातत्व एक मुकम्मल विज्ञान नहीं बल्कि एक 'असटीक विज्ञान' है जिसमे सिर्फ हवाला देते हुए या मान लेने पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है. 


इस पुरातात्विक सर्वेक्षण के मामले में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने दो स्वतंत्र पुरातत्वविदों को शामिल किया था जिनमे एक सुप्रिया विराम थीं और दूसरी जया मेनन.


इन दोनों ही स्वतंत्र पुरात्वविदों ने एएसआई के सर्वेक्षण पर अलग से एक शोध पत्र जारी कर कई सवाल खड़े किए हैं.


ये दोनों ही शोधकर्ता एएसआई के सर्वेक्षण के दौरान मौजूद थीं. लेकिन केके मुहम्मद सर्वे पर सवाल खड़ा करने वालों पर वामपंथी सोच से प्रभावित होने का आरोप लगाते हैं.


उनका कहना है कि इस ढाँचे की दीवारें  10वीं  शताब्दी के एक मंदिर की हैं जो वहां पहले हुआ करता था. 


उन्होंने 10वीं और 12वीं शताब्दी और उसके बाद भारत आये यात्रियों का हवाला देते हुए कहा कि इस सभी यात्रियों ने अपनी अपनी 'यात्रा वृतांत' में अयोध्या में विवादित स्थल पर हिन्दू रीति रिवाज से होने वाली पूजा का हवाला दिया है. 


केके मुहम्मद ने विलियम फिंच और जोज़फ टैफिनथलर का हवाला दिया और साथ में मुग़ल बादशाह अकबर के 'दरबार-नामे' यानी उनके दरबार के इतिहासकार अबू फ़ज़ल द्वारा फ़ारसी में लिखे गए 'आइन-ए-अकबरी'  के हवाले से कहा कि विवादित स्थल पर 'भगवान राम की पूजा' का उल्लेख इनमें किया गया है.    


फिंच वर्ष 1607 और 1611 के बीच भारत आए थे जबकि जोज़फ़ वर्ष 1766 और 1771 के बीच भारत की यात्रा पर आए थे.


कई मंदिरों का संरक्षण


केके मुहम्मद को कई प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों को ढूंढने और उनके संरक्षण का श्रेय जाता है. इनमें आगरा के फ़तेहपुर सीकरी की वो जगह भी है जहाँ मुग़ल बादशाह अकबर ने 'दीन-ए-इलाही' मज़हब की शुरुआत की थी. 


इसके अलावा उन्होंने मध्य प्रदेश के मुरैना के पास बटेश्वर में गुजर राजाओं के दौर के मंदिरों के अवशेषों की न सिर्फ़ खोज की बल्कि उन्होंने पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुके 200 में से 70 मंदिरों का पुनर्निर्माण भी किया.


चूंकि खनन माफ़िया रह-रहकर मंदिर के आसपास विस्फ़ोट कर पत्थरों की तस्करी करता था, केके मुहम्मद ने मंदिरों के संरक्षण के लिए वहां के बीहड़ों में मौजूद डकैतों से मदद ली.


उन्हें छत्तीसगढ़ के सबसे ज़्यादा नक्सल प्रभावित बस्तर के दंतेवाड़ा के पास बारसूर और सामलूर मंदिरों के संरक्षण का काम भी किया.


बिहार के केसरिया और राजगीर में बौद्ध स्तूपों की खोज का श्रेय भी केके मुहम्मद को जाता है. वर्ष 2019 में उन्हें उनके कामों के लिए पद्मश्री दिया गया था.  


वर्ष 2016 में उन्होंने अपनी आत्मकथा 'नजान इन्ना भारतीयन' लिखी थी, जिसका मतलब है - 'मैं, एक भारतीय.'



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