पर्यावरण को बचाने में व्यावसायिक शिक्षा का बड़ा योगदानः प्रो. खंबायत

- पीएसएससीआईवीई में तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न



भोपाल। पीएसएस केन्द्रीय व्यावसायिक शिक्षा संस्थान में तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा पर आधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन बुधवार को वक्ताओं ने औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादक कार्य, सतत आजीविका, व्यक्तिगत सशक्तिकरण और सामाजिक आर्थिक विकास के अवसरों को बढ़ाने के लिए यूनिवॉक केंद्रों सहित विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा अपनाई गई रणनीतियों और कार्रवाई पर चर्चा की। इस अवसर पर संस्थान के संयुक्त निदेशक प्रो. राजेश पुं. खंबायत ने औद्योगीकरण के इस दौर में पर्यावरण पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत बताई। प्रो. खंबायत ने कहा कि आर्थिक उन्नति की इस दौड़ में वातावरण की अनदेखी हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता स्तर और उद्योगों से फैलने वाले प्रदूषण से जीवन प्रभावित हो रहा है। भारत दूसरा बड़ा देश है, जो लगातार जलवायु परिवर्तन की तीव्रता से प्रभावित हो रहा है। इन सब समस्याओं का समाधान केवल व्यावसायिक शिक्षा में निहित है। उन्होंने पीएसएससीआईवीई के व्यावसायिक गतिविधियों में स्वस्थ वातावरण के तहत व्यावसायिक शिक्षा को तकनीकि व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण (टीवीईटी) के तहत जोड़कर परिभाषित किया।


भारत की 'लक्ष्य योजना' पर मिलकर करेंगे कामः डॉ. ह्यूट-मर्चेन्ट


कार्यक्रम में युवा, साक्षरता और कौशल विकास यूनिवॉक-पेरिस के अनुभाग प्रमुख डॉ. हर्वे ह्यूट-मर्चेन्ट ने टीवीईटी के लक्ष्य को अपनाने की जरूरत बतात हुए क‍हा कि भारत के पास एक 'लक्ष्य योजना' है, जिस पर हमें साथ मिलकर काम करने की जरूरत है, ताकि हम इस लक्ष्य को हासिल कर सकें। वहीं, टेक्नोलॉजी एंड एडवांस लर्निंग बोस्क्यू गवर्नमेंट स्पेन के निदेशक रिकार्डो लेमेड्रिड ने व्यावसायिक शिक्षा पर की गई अपनी केस स्टडी को साझा किया। उन्होंने कहा कि टीवीईटी सिस्टम के लिए तीन पिल्लरों की आवश्यकता होती है, जिसमें प्रशिक्षण सबसे प्रमुख है। चौथी औद्योगिक क्रांतिके लिए शोध एवं नवाचार आवश्यक है। उन्होंने छात्रों के लिए नई गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, मांग के अनुसार नए कौशल को पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात कही। 


रोजगार के लिए दो मूलभूत मॉडलः जेन एब्बन


इस दौरान एस्पु क्षेत्र ओम्निया व्यावसायिक महाविद्यालय, फिनलैंड के प्रमुख विकास अधिकारी डॉ. तुक्का सोइनी ने कहा कि व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के प्रशिक्षण के अनुसार परीक्षा में समीक्षा और करके सीखने की अधिकारिक योजनाएं होनी चाहिए, जिससे सुदृढ़ भविष्य का निर्माण हो सके। कार्यक्रम में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम नई दिल्ली के सलाहकार जेन एब्बन ने दो मूलभूत मॉडल, डिग्री कोर्स और डिग्री कम इंटर्नशिप पर बात की। उन्होंने बताया कि मॉडल एक 50 प्रतिशत और मॉडल दो 70 से 80 प्रतिशत के रोजगार देने में सफल है। उन्होंने भारत की व्यावसायिक शिक्षा नीति के सकारात्मक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए इसमें सुधार के भी महत्वपूर्ण सुझाव दिए।


‘करके सीखने’ पर हो विशेष फोकसः डॉ. नूर


जर्मन सोसायटी फॉर इंटरनेशनल कॉपरेशन (जीआईजेड), भारत के कार्यक्रम निदेशक डॉ. नूर ने बताया कि भारत में औद्योगिक स्तर पर जो कार्यक्रम एवं योजनाएं हैं, उनमें परिवर्तन की जरूरत है। हमारा करके सीखनेपर विशेष फोकस होना चाहिए। टीवीईटी, उद्योग एवं कंपनियों को 4.0 की औद्योगिक क्रांति की ओर ले जाने के लिए प्रयासरत है। कौशल के क्षेत्र में प्रशिक्षण अत्यन्त महत्वपूर्ण है, इसको कक्षा एवं पाठ्यक्रमों तक पहुंचाने की जरूरत है। छात्र कंपनियों, उद्योगों का भ्रमण कर इससे लाभान्वित हो सकते हैं। 


इन्होंने भी रखें विचार


विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी, कोलकाता के निदेशक डॉ. बी. के. दत्ता, यूनेस्को-यूनिवॉक, जर्मनी के पूर्व प्रमुख डॉ. श्यामल मजूमदार, शुभ्रा बायोटेक हैदराबाद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. कृष्णा पबसेट्टी, एनआईटीटीटीआर, चेन्नई के पूर्व प्रोफेसर थनिका छालम वेधाथिरी, राष्ट्रीय शिक्षा योजना और प्रशासन संस्थान के पूर्व कुलपति डॉ. जनध्याला बी. जी. तिलक आदि ने भी संगोष्ठी में अपने अनुभवों को साझा किया। 


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      जीतेन्द्र कुमार- 7879325981   


(प्रो. पी. विरैया)


मीडिया समन्वयक


 


 


 


 


 


 


 


 


 


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