मैं को जाने बिना लक्ष्य की प्राप्ति संभव नहीं : डॉ.ज्ञानवर्ध्दन पाठक

तीन दिवसीय भारतीय संस्कृति एवं अध्यात्म शिविर का द्वितीय दिवस
श्री सत्य साई स्वाशासी महिला महाविद्यालय, भोपाल में आयोजित तीन दिवसीय भारतीय संस्कृति एवं अध्यात्म शिविर के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में शिविर का प्रारंभ ज्योति ध्यान से हुआ जो डॉ. सुरभि अवस्थी तथा विक्रमादित्य अवस्थी के द्वारा संचालित किया गया ध्यान के महत्व पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने बताया कि मेडीटेशन यानी यान ना सिर्फ अध्यात्म
से जुड़ा है बल्कि यह विज्ञान से भी जुड़ा है. इसके नियमित अभ्यास से व्यक्ति  को शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक लाभ की प्राप्ति होती है. ध्यान शरीर को स्थिर शक्ति प्रदान करता है एवं विचारों को प्रबलता प्रदान करता है. तनाव मुक्ति का सबसे कारगर उपाय है घ्यान. ध्यान के नियमित अभ्यास से अनेक शारीरिक मानसिक व्याधियों से बचाव हो सकता है तथा आत्मविश्वास में वृद्धि के साथ ही घ्यानकर्ता निरंतर लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है. द्वितीय वक्ता श्रीमती लता राज ने वेद पोषण विषय पर व्या यान के अंतर्गत वेद पाठ के महत्व को समझाते हुए वेद पाठ का सस्वर प्रशिक्षण दिया. उन्होंने कहा कि वेद ईश्वर की वाणी है तथा भारतीय चिंतन का मूलाधार है. सही उतार चढ़ाव के साथ वेद पाठ अत्यंत प्रभावशाली हो जाता है तथा अणु-रेणु- परमाणु को पवित्र कर देता है. भारतीय संस्कृति वेद पोषित संस्कृति है, इसलिए सदैव विश्व में पूजित रही है. वेदों के अमृत सिंचन से ही भारतीय संस्कृति तेज, उत्साह और देवत्व से परिपूर्ण रही है. वेदों के नियमित उच्चारण से व्यक्ति न केवल अपने अंदर की नकारात्मकता का नाश करता है अपितु वेदों की सकारात्मक ऊर्जा के माध्यम से समाज की नकारात्मकता का भी विनाश करता है. डॉ.ज्ञानवर्ध्दन  पाठक ने अपने व्याख्यान में कहा कि - जब हमें मैं से मेरा की
भावना आती है तब हम ईश्वर के पृथक हो शुभ चेतना बनकर प्रकृति के आकर्षण से उत्पन्न क्षोभ से बने संसार में विचरण करने लगते हैं. ईश्वर ने हमें अपने आप से पृथक सिर्फ प्रेम करने के लिए किया है. इसलिए आवश्यकता है सत्यम शिवम सुन्दरम को समझने की. मैं को जाने बिना लक्ष्य की प्राप्ति संभव नहीं है. हम अपनी क्षमताओं को तभी जान पाएंगे जब स्वयं को जानेंगे.
आकाश के पार विषय पर व्याख्यान देते हुए चन्द्रशेखर तापी ने कहा कि ये पूरी सृष्टि एवं हमारा शरीर पंच तत्वों से निर्मित है - आकाश, जल, वायु, अग्नि, धरती. जिसमें आकाश तत्व अत्यंत सूक्ष्म एवं सर्वथा व्याप्त है. जब पंच तत्वों का भेदन करते हुए प्राण आकाश तत्व में स्थिर होता है तब वह सृष्टि के निर्माता या ईश्वर को जान पाता है. गायत्री मंत्र में निहित वैज्ञानिक चेतना तथा ऊर्जा के प्रवाह का मानवीय व्यक्तित्व एवं मानवीय चेतना पर गहन प्रभाव को रेखांकित करते हुए अशोक कुमार ने गायत्री मंत्र की वैज्ञनिक पृष्ठभूमि विषय पर शिविरार्थियों को व्याख्यान दिया. तत्पश्चात शिविरार्थियों के लिए चरित्र
निर्माण पर आधारित मूल्य पर· फिल्म का प्रदर्शन किया गया. शिविर संयोजिका डॉ. अनीता अवस्थी के साथ शिविरार्थियों ने अत्यंत उत्साहपूर्वक मूल्य पर· गीत - लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती.
का सामूहिक गान किया गया. महाविद्यालय की छात्राओं द्वारा समय का सदुपयोग, महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों पर लघु नाटिका का मंचन किया गया एवं नवीन अवस्थी द्वारा समूह भजन संध्या का आयोजन किया गया. 


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